अभ्यास के प्रश्न
1) निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर (✓) का निशान लगाइये-
i) सरसों की सिंचाई किस विधि से की जाती हैं?
क) नाली विधि
ख) थाला विधि
ग) क्यारी विधि (✓)
घ) जल-प्लवन विधि
ii) आलू की फसल की सिंचाई किस विधि से की जाती है?
क) क्यारी विधि
ख) छिड़काव विधि
ग) थाला विधि
घ) कूँड़ विधि (✓)
iii) ऊँची-नीची भूमि की सिंचाई किस विधि से करते हैं ?
क) क्यारी विधि
ख) थाला विधि
ग) छिड़काव विधि (✓)
घ) कूँड़ विधि
iv) खेत में जल भराव से मृदा ताप-
क) घटता हैं (✓)
ख) बढ़ता हैं।
ग) स्थिर रहता है
घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
2) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1) क्यारी विधि सिंचाई की उत्तम विधि है। (क्यारी / थाला )
2) नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता है। (नमी / सूखा)
3) कूँड़ विधि से आलू के खेत की सिंचाई की जाती है। (कूँड़ / थाला)
4) ड्रिप विधि में अधिक धन तथा कुशल श्रम की आवश्यकता पड़ती है। (ड्रिप / प्रवाह)
5) खेत से अतिरिक्त जल का निकालना ही जल निकास कहलाता है। (जल / मृदा)
3) निम्नलिखित कथनों में सही के सामने (✓) का तथा गलत के सामने (×) का निशान लगाइये–
1) प्रवाह विधि से आलू की फसल की सिंचाई की जाती है। (×)
2) प्रवाह विधि में कम श्रम की आवश्यकता होती हैं। (✓)
3) क्यारी विधि से गेहूँ की सिंचाई नहीं की जाती हैं। (×)
4) कूँड़ विधि से गन्ने की सिंचाई की जाती है। (✓)
5) थाला विधि से पपीते के बाग की सिंचाई की जाती हैं। (✓)
4) निम्नालिखित में स्तम्भ `क’ का स्तम्भ `ख’ से सुमेल कीजिए-
स्तम्भ `क’ | स्तम्भ `ख’ |
गेहूँ की सिंचाई | क्यारी विधि |
धान की सिंचाई | प्रवाह या जल प्लवन विधि |
जल निकास विधि | भूमिगत नाली |
जल भराव भूमि | दलदली |
5) सिंचाई देर से करने पर फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?
उत्तर-
फसलों का समुचित विकास नही हो पाता है जिससे उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
6) जल भराव से पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?
उत्तर-
जल भराव से पौधों पर प्रभाव-
जल भराव से पौधों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है-
1. जल भराव से भूमि का तापक्रम कम हो जाता है। जिसके कारण फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
2. जड़ों द्वारा भूमि से पोषक तत्त्वों के अवशोषण की क्रिया रुक जाती है जिससे पौधे की वृद्धि और विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।
7) छिड़काव विधि क्या हैं? भारत में यह विधि अभी तक अधिक लोकप्रिय क्यों नहीं हो सकी हैं?
उत्तर-
छिड़काव विधि-
इस विधि में पानी को पाइपों के द्वारा खेत तक ले जाया जाता है तथा स्वचालित यन्त्रों द्वारा फसलों पर छिड़काव करके सिंचाई की जाती है।
इस विधि का प्रयोग प्राय: उन्नतशील कृषकों द्वारा ही किया जाता है। श्रम और धन की अपेक्षाकृत अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए यह विधि भारत में लोकप्रिय नहीं हो सकी।
8) थाला विधि से सिंचाई के दो लाभ लिखिए।
उत्तर-
थाला विधि के गुण-
1) इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है क्योंकि पानी पूरे क्षेत्र में देने के बजाय प्रत्येक पौधे की जड़ो के पास बने थालों में दिया जाता है।
2) पौधे की जड़-तना सीधे जल के सम्पर्क में नहीं आते है जिससे पौधे को कोई हानि नहीं होने पाती है।
9) जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ बताइए।
उत्तर-
जल जमाव से होने वाली हानियाँ-
- मृदा वायु संचार में कमी होना।
- मृदा में हानिकारक लवणों का इकट्ठा होना।
10) उचित जल निकास का मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
उचित जल निकास का मिट्टी पर प्रभाव-
उचित जल निकास का मिट्टी पर निम्न प्रभाव पड़ता है
- उचित जल निकास से मिट्टी का ताप सन्तुलित हो जाता है जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है।
- मृदा उपस्थित में हानिकारक लवण अतिरिक्त पानी के साथ बह जाते हैं।
- मृदा में जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है।
11) थाला विधि की सिंचाई का चित्र बनाइए।
उत्तर-
12) आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर–
आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसलों की वृद्धि और विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
13) सिंचाई का अर्थ समझाइए। सिंचाई की कितनी विधियाँ होती हैं? किन्ही दो विधियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
फसलों और बागों में पानी देने की प्रक्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है। सिंचाई की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
- जल-प्लवन या प्रवाह विधि
- क्यारी विधि
- कूँड़ विधि
- थाला विधि
- बरहा विधि
- छिड़काव विधि
- ड्रिप (टपक) विधि
14) प्रवाह तथा ड्रिप विधि के गुण और दोष लिखिए।
उत्तर-
जल प्लवन या प्रवाह विधि के गुण-
1) सिंचाई करने में आसानी होती है।
2) सिंचाई करने में समय की बचत होती है।
जल-प्लवन या प्रवाह विधि के दोष
1) खेत में जल का वितरण असमान होता है।
2) पानी अधिक लगता है।
3) ढालू खेतों व अधिक नमी न सहन करने वाली फसलों के लिए अनुपयुक्त विधि है।
ड्रिप विधि के गुण-
- कम पानी से ज्यादा क्षेत्रफल की सिंचाई की जा सकती है।
- पानी की हानि न्यूनतम होती है।
ड्रिप विधि के दोष-
- प्रारंभिक लागत अधिक होती है।
- तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है
15) फलदार वृक्षों के लिए आप सिंचाई की किस विधि को अपनायेंगे और क्यों? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
फलदार वृक्षों की सिंचाई के लिए थाला विधि अपनायेंगे क्योंकि इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है और पौधे पानी का समुचित उपयोग करते हैं।
16) जल निकास का अर्थ समझाइए। जल जमाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जल निकास का अर्थ-
किसी भी स्थान से अतिरिक्त पानी निकालकर बहा देना जल निकास कहा जाता है किन्तु कृषि विज्ञान में इसका विशेष अर्थ है। फसलोत्पादन हेतु खेत से अतिरिक्त जल को निकालना जिससे मृदा की उचित दशा बनी रहे।
जल जमाव से हानियाँ-
जल की अधिकता से निम्न हानियाँ होती हैं-
- मृदा वायु संचार में कमी
- मृदा ताप में कमी।
- भूमि का दलदली होना।
- लाभदायक मृदा जीवाणुओं के कार्यो में बाधा।
17) मृदा से जल निकास कितने प्रकार से किया जाता है? जल निकास की किसी एक विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जल निकास की दो विधियाँ हैं-
- सतही खुली नालियों द्वारा।
- भूमिगत बन्द नालियों द्वारा
भूमिगत बन्द नालियाँ तीन प्रकार की होती हैं-
- पोल जल निकास नाली
- स्टोन जल निकास नाली
- टाइल जल निकास नाली
पोल जल निकास नालियाँ-
जहाँ लकड़ियां आसानी से मिल जाती है उन स्थानों के लिए इस प्रकार की निकास नालियाँ बहुत उत्तम रहती है। जल निकास नालियाँ 80 से 90 सेमी गहरी तथा 30 सेमी चौड़ी होती है। लकड़ी के टुकड़ों को तिकोने आकार में गिन-चुनकर रख दिया जाता है। इसके अगल-बगल को लकड़ियों से भर दिया जाता है।
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